39 वर्ष से कागजों में अटका है ओंकारेश्वर अभयारण्य
वन्य प्राणियों के लिए सुरक्षित आवास के लिए अभयारण्य की आवश्यकता
भोपाल । इंदिरा सागर बांध के निर्माण की स्वीकृति के करीब 39 साल बाद ओंकारेश्वर वन्यप्राणी अभयारण्य की उम्मीद बंधी है। खंडवा, देवास और हरदा जिलों के वन क्षेत्र को मिलाकर 614 वर्ग किलोमीटर में प्रस्तावित अभयारण्य के गठन का प्रस्ताव शासन स्तर पर लंबित था। इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर बांध की वजह से वन क्षेत्र डूबने से वन्य प्राणियों को सुरक्षित आवास व संरक्षण देने के लिए अभयारण्य तैयार करना है। लंबी जद्दोजहद के बाद इसकी कार्रवाई अंतिम चरण में पहुंच चुकी है। इससे अभयारण्य की अधिसूचना जल्द जारी होने की राह प्रशस्त हो गई है।
अभयारण्य के बनने से बाघ, तेंदुआ, सियार, चीतल, भालू जैसे वन्य प्राणियों को बेहतर परिवेश के साथ ही टूरिज्म को भी बढ़ावा मिलेगा। इंदिरा सागर के बैकवाटर में उभरे 50 से अधिक टापुओं से घिरे अभयारण्य की अधिसूचना से पूर्व प्रशासन सभी पक्षों से चर्चा व सुझाव के लिए बैठकें आयोजित कर रहा है।
संरक्षण का प्रस्ताव
देश और प्रदेश की प्रगति के उद्देश्य से बांध बनाकर हजारों हेक्टेयर जंगल को डुबाने वाले शासन-प्रशासन को वन्य जीवों की कितनी चिंता है, यह ओंकारेश्वर अभयारण्य की सुस्त रफ्तार से स्वत: ही स्पष्ट है, जबकि इस अभयारण्य को वन्य प्राणियों को संरक्षण देने के लिए प्रस्तावित किया गया था। नर्मदा नदी पर बने इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर सागर बांध के कारण खंडवा देवास और हरदा जिले का 40332 हेक्टेयर सघन वन क्षेत्र प्रभावित हुआ था। इसमें बेशकीमती पेड़ों के अलावा कई प्रकार के शाकाहारी और मांसाहारी प्राणी थे। बांध बनने के बाद इन वन्य प्राणियों को संरक्षित करने के लिए ओंकारेश्वर अभयारण्य प्रस्तावित था। इसकी जिम्मेदारी नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) को दी गई थी। दिसंबर 1987 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की निगरानी में कमेटी गठित की थी। सेंचुरी बनाने के लिए आवश्यक तैयारी और प्लान के अनुरूप निर्देश तय किए गए थे। इसके चलते अभयारण्य क्षेत्र में अधोसंरचनात्मक विकास के कार्य हुए। इनमें संचालन कार्यालय भवन, वनपाल, वनरक्षक आवास के अलावा सात वाच टावर बन चुके हैं।
दो जिलों में 625 वर्ग किमी जंगल प्रस्तावित
ओंकारेश्वर अभयारण्य के लिए खंडवा जिले का 450 वर्ग किमी, देवास 225 वर्ग किमी तथा कुछ हिस्सा हरदा जिले के वन क्षेत्र का आ रहा है। अभयारण्य की जद में कोई भी राजस्व गांव नहीं आ रहा है। भौगोलिक और प्राकृतिक रूप से यह वन क्षेत्र बाघों के लिए सुरक्षित पनाहगाह भी साबित होगा। यहां एक ओर इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर बांध का बैक वाटर फैला है, दूसरी ओर सतपुड़ा की ऊंची-ऊंची पहाडिय़ां पूरे क्षेत्र को सुरक्षित बनाती हैं।
लिंक परियोजना से हुआ विलंब
अभयारण्य का कार्य करीब 39 साल से चल रहा है। एनवीडीए द्वारा आवश्यक अधोसंरचना विकास पर करोड़ों रुपये खर्च किए है। समय-समय पर आपत्तियां और केंद्र सरकार के मापदंड़ों की वजह से अधिसूचना टलती रही। पांच साल पहले अभयारण्य को हरी झंडी मिलना लगभग तय हो गया था, लेकिन कालीसिंध लिंक परियोजना की वजह से अधिसूचना टल गई है। बताया जाता है कि इस परियोजना की पाइप लाइन बिछाने का कार्य अभयारण्य के अंदर से होना था, इसलिए राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह से मामला अटक गया था।
इनका कहना है
ओंकारेश्वर अभयारण्य को लेकर अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों से चर्चा हुई। इससे वन्य जीवों का संरक्षण, पयर्टन को बढ़ावा तथा स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सकेगा। अभयारण्य की परिधि में कोई गांव नहीं आ रहा है। इससे किसी प्रकार के विस्थापन की जरूरत नहीं पड़ेगी।
-ज्ञानेश्वर पाटील, सांसद
ओंकारेश्वर अभयारण्य का कार्य एनवीडीए द्वारा किया जा रहा था। इसमें विलंब की कोई स्पष्ट वजह नहीं है। अब कार्य तेजी से हो रहा है। जल्द ही प्रस्ताव शासन को अधिसूचना के लिए भेजा जाएगा।
-रमेश गनावा, मुख्य वनसंरक्षक खंडवा