मंदिरों को एकसूत्र में पिरोने का संघ का प्लान, भागवत के मन में क्या है?
नई दिल्ली। देशभर के मंदिरों को एक छत के नीचे लाने और एक सूत्र में पिरोने के मकसद से आध्यात्मिक नगरी काशी में मंदिरों का महाकुंभ आयोजित किया गया. वाराणसी के रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में तीन दिनों तक चले अंतरराष्ट्रीय टेम्पल्स कन्वेंशन एंड एक्सपो में देश और दुनिया के करीब 400 मंदिरों के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने अनुभव को साझा किया.
कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संघचालक मोहन भागवत ने दुनिया भर के मंदिरों के प्रमुखों को संबोधित किया. साथ ही उन्होंने मंदिरों को राष्ट्रीय एकता का सूत्रधार बताते हुए उपासना सेवा और भारतीय कला का केंद्र बनाने की आवश्यकता जताई. संघ प्रमुख ने कहा कि पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक की छोटे-बड़े सभी मंदिरों को एक सूत्र में पिरोकर हम भारत को फिर से विश्वगुरु बना सकते हैं.
सभी समाज की चिंता करने वाले मंदिर होने चाहिए- भागवत
मोहन भागवत ने कहा कि मंदिरों के संचालन के लिए नई पीढ़ी को तैयार करना होगा. अब समय आ गया है कि देश और संस्कृति के लिए त्याग करें और सभी समाज की चिंता करने वाले मंदिर होने चाहिए. आम लोगों के दुख दूर करने वाला, विपत्ति में आसरा देने वाला, संस्कार देने वाला, शिक्षा देने वाला, उपासना और उनको प्रेरणा देने वाला मंदिर होना चाहिए. सर्व समाज की चिंता करने वाला मंदिर होना चाहिए. देश के सभी मंदिरों के एकत्रीकरण से सिर्फ मंदिरों को ही नहीं समाज का भी उत्थान होगा. मंदिर केवल पूजा-प्रार्थना स्थल ही नहीं बल्कि सेवा, शिक्षा और चिकित्सा का केंद्र रहे हैं.
तिरुपति बालाजी मंदिर का उदाहणरण देते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि तिरुपति संस्थान ने 57000 मंदिरों की चिंता करने का बीड़ा उठाया है. ये सभी 57000 मंदिर दूर देहातों में स्थित हैं, जहां अनुसूचित जाति, अनसूचित जनजाति और ओबीसी जातियों के लोग रहते हैं. इन मंदिरों में उसी वर्ग के लोग पुजारी हैं. अब इनकी चिंता तिरुपति संस्थान करेगा तो मंदिर के साथ-साथ समाज भी जुड़ेगा.
उन्होंने कहा कि हमें मंदिरों की सूची बनानी चाहिए. गली में अगर एक छोटा मंदिर भी है तो उसकी भी सूची बनाएं और उन मंदिरों में रोज पूजा हो. मंदिर बस्ती, गांव, समाज से जुड़े, इसके लिए चिंता करें. मंदिर को कैसे और किस रूप में चलाया जाए इसपर चिंता करनी चाहिए. मंदिर को चलाने वाले भक्त होने चाहिए. मंदिर हमारे देश में सनातन परंपरा को मानने वाले सभी का एक अनिवार्य और आवश्यक अंग है.
संघ ने तैयार किया 9000 से ज्यादा मंदिरों का डाटाबेस
भारत सहित 57 देशों में स्थापित 9000 से ज्यादा मंदिरों का डाटाबेस संघ ने तैयार किया है. इसके जरिए संघ छोटे मंदिरों को देश के बड़े मंदिरों के साथ जोड़ने की रणनीति पर काम कर रहा है ताकि हिंदुत्व को देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में एक बेहतर धर्म के रूप में स्थापित किया जाए. इसके लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदू धर्मायजनों को एक मंच पर लाने की तैयारी है. वाराणसी में तीन दिनों तक चले मंदिर सम्मेलन में भारत ही नही बल्कि दुनिया के 10 देशों के प्रतिनिधि पहुंचे थे जबकि 22 देशों के प्रतिनिधि वर्चुअली शामिल हुए थे.
पटना की महावीर मन्दिर, श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, कटरा माता वैष्णों देवी मन्दिर, उज्जैन का श्री महाकाल ज्योतिर्लिंग मंदिर, श्री तिरुमला तिरुपति बालाजी, शिरडी साईं बाबा मंदिर, जूनागढ़ की गिरनार दत्तात्रेय मंदिर, पंढारपुर का श्री विट्ठल रुक्मिणी मन्दिर, पुरी का जगन्नाथ मंदिर, अकोडी की मां कंकाल काली मंदिर, इस्कॉन मन्दिर. कोलकाता का काली माता मंदिर, गुवाहाटी का मां कामाख्या शक्तिपीठ और अहमदाबाद का स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर से जुड़े हुए लोगों ने हिस्सा लिया और अपने अनुभव को साझा किया.
जारी किया जाएगा श्वेत पत्र
काशी का महाकुंभ मंदिरों कि आय और ताकत को लेकर एक नए समीकरण की शुरुआत भारत और दुनिया के देशों के मंदिरों के साथ किया जा रहा है. देश-विदेश के 700 मंदिरों के प्रबंधकों को एक साथ एक मंच पर लाना अपने आप में अहम है. तीन दिनों के महासम्मेलन में सभी योजना बनी है, उस पर श्वेत पत्र जारी किया जाएगा.
आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रसाद लाड ने कहा कि हर तीन साल में मंदिरों के महासम्मेलन किए जाएंगे. उन्होंने कहा कि आम आदमी का पैसा आम आदमी तक पहुंचाया जाए. मन्दिर के पैसों से मंदिरों का जीर्णोद्धार हो, जिस तरह के लंगर गुरुद्वारे में चलाए जाते हैं, उसी तरह मंदिरों में भी चलाए जाएं. भक्तों को प्रसाद और भूखे को भोजन मिलेगा. इतना ही नहीं उन्होंने मंदिरों को समाज सेवा से जोड़ने पर भी जोर दिया.
‘संघ प्रमुख के बयान में काफी गहरी सोच’
वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी कहते हैं आरएसएस काफी पहले से ही मंदिरों और हिंदुओं को एक सूत्र में पिरोने के लिए काम कर रहा है. संघ प्रमुख ने काशी के मंदिर सम्मेलन में जिस तरह से देश के सभी मंदिर को आपस में जोड़ने की बात कही है, उसके पीछे सोच काफी गहरी है. देश में तमाम मंदिर बिखरे हुए हैं, वो आपस में जुड़े हुए नहीं है. इतना ही नहीं देश में कुछ मंदिर आर्थिक रूप से मजबूत हैं, लेकिन बड़ी संख्या में काफी कमजोर स्थिति है.
संघ की पहली मंशा है कि किसी तरह से सभी मंदिरों को आपस में जोड़ा जाए ताकि सभी मंदिरों का उत्थान हो सके. तिरुपति बालाजी और पद्मनाभ मंदिर देश के सबसे धनी मंदिरों में से एक हैं तो दूसरी तरफ गांव और कस्बों में मंदिर की स्थिति बहुत ही दयनीय हैं. इस तरह से आरएसएस चाहता है कि देश भर के छोटे-बड़े सभी मंदिरों को आपस में जोड़कर उनके प्रबंधन को एक छत के नीचे रखा जाए ताकि समान रूप से विकास हो सके.
‘हिंदुओं को भी एकसूत्र में पिरोकर रखना चाहता है संघ’
विजय त्रिवेदी कहते हैं कि संघ सिर्फ मंदिरों को ही एक साथ जोड़ने की रणनीति नहीं बल्कि उसके बहाने हिंदुओं को भी एकसूत्र में पिरोकर रखना चाहता है. संघ इस बात को लेकर काफी समय से काम कर रहा है. गांव में एक मंदिर, एक शमशान, एक कुंआ का अभियान अरसे से चला रहा है ताकि जाति व्यवस्था को खत्म करके सभी को हिंदुत्व की छत्रछाया में लाया जा सके, क्योंकि अभी भी दलित-पिछड़े वर्ग के लिए अलग मंदिर और शमशान मिल जाएंगे तो सवर्ण जातियों के अलग हैं. यही बात संघ के हिंदुत्व की राह में बाधा बन रही है, जिसे खत्म करने के लिए हर संभव कर रहा है और अब उसी को विस्तार देते हुए देश के सभी मंदिरों को एक दूसरे से जोड़कर हिंदुओं को एक साथ जोड़े रखा जा सके.
वह कहते हैं कि देश में मंदिर भी अलग-अलग मत और संप्रदाय के हैं, जिन्हें आरएसएस इस तरह से साथ जोड़ने की कोशिश में है. संघ प्रमुख ने तिरुपति बालाजी के द्वारा किए जा रहे उन मंदिरों के उत्थान की बात ऐसे नहीं रखी बल्कि उसके जरिए दलित, आदिवासी और ओबीसी जातियों के गांव में मंदिर और उसी वर्ग के लोग पुजारी होने की बात करके सियासी संदेश दने की रणनीति है. साथ ही उन्होंने दूसरे बड़े मंदिरों को भी संदेश देने की कोशिश की है, उन्हें भी इस दिशा में काम करने की जरुरत है.
मंदिरों की आय को लेकर हस्तक्षेप कर रही हैं सरकारें
वहीं, देश में बड़ी संख्या में मंदिरों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के चलते मंदिर के रख-रखाव और पुजारियों के लिए सरकार से आर्थिक मदद की डिमांड उठती रहती है. हाल के कुछ सालों केंद्र सरकार और राज्य सरकारें मंदिरों की व्यवस्था और मंदिरों की आय को लेकर जो हस्तक्षेप कर रही हैं, उसे मंदिर प्रबंधक स्वीकार नहीं कर रहे हैं. ऐसे में आरएसएस की कोशिश है कि मंदिरों को सरकारों के अधीन से बचाने के लिए मंदिरों को ही निर्भर और मजबूत करने की दिशा में काम करना होगा ताकि सरकार पर उनकी निर्भरता न हो और न ही सरकारों का हस्ताक्षेप हो. संघ सभी मंदिरों को एक साथ जोड़कर उसी तरह से काम करने की कोशिश में है, जिस तरह से देश में सिखों के गुरुद्वारा और ईसाइयों के चर्च काम करते हैं.
संघ प्रमुख की बातों से एक बात साफ है कि मंदिरों में जनता अपनी श्रद्धा और भक्ति के साथ जो पैसे और धन दान करती है. निश्चित रूप से उसका उपयोग जनता के लिए होना ही चाहिए, जितने भी भगवान पौराणिक हिंदू मान्यताओं में हैं. उन्होंने जन कल्याण के लिए अपना सब कुछ त्याग आम जन के लिए काम किया. इसीलिए मंदिरों के जरिए समाज के लिए काम किया जाना चाहिए ताकि सर्वसमाज के बीच हिंदु धर्म की एक बेहतर छवि बन सके. इसी मंशा के तहत पहली बार इतनी बड़ी संख्या में मंदिर के व्यवस्थापक एकजुट हुए. मंदिर सम्मलेन में किसी भी शंकराचार्य को नहीं बुलाया गया था, जिसके चलते एक बड़ा सवाल यह भी है कि मंदिर के प्रबंधक संघ छत के नीचे आने के लिए सहमत होंगे कि नहीं?
कोई ठोस रणनीति बनती नहीं दिख रही- महावीर मंदिर न्यास के सचिव
हालांकि, काशी के मंदिर सम्मलेन में महावीर मंदिर न्यास के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने हिस्सा लिया और मंदिरों के बेहतर प्रबंधन, वित्तीय अनुशासन विषय पर अपनी बात रखी. आचार्य किशोर कुणाल ने टीवी9 हिंदी डॉट कॉम से बातचीत करते हुए कहा कि मंदिर समागम के कार्यक्रम में दो दिन हिस्सा लेकर वापस लौट आया हूं. मुझे अभी कोई ठोस रणनीति बनती नहीं दिख रही है, क्योंकि सम्मेलन में जिस तरह की बातें की गई हैं, उसे लेकर मैं फिलहाल संतुष्ट नहीं हूं. उन्होंने कहा कि मेरी नजर उस पर है कि कार्यक्रम में जिन लोगों ने अपने-अपने विचार रखे हैं, उसे लेकर किस तरह से प्रस्ताव पास किए जाते हैं, उससे ही आगे की दिशा और दशा तय होगी.