कांग्रेस के मन में आज भी बसी है बाबरी मस्जिद
देश-दुनिया में अयोध्या को रामलला की जन्मभूमि के रूप में मान्यता मिली हुई है। जनवरी, 2024 में भव्य मंदिर में उनकी प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस विशेष अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित होंगे। करोड़ों सनातनियों के लिए अयोध्या और श्रीराम आस्था के प्रमुख केंद्र रहे हैं। लेकिन, कांग्रेस आज भी बाबरी मस्जिद का राग अलाप रही है। अयोध्या में वह बाबर द्वारा कब्जाए गए मंदिर और उस पर बनाए मस्जिद का ही गुणगान कर रही है।
कमलानाथ ने याद किया बाबरी को
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ मुस्लिम तुष्टिकरण में इतने डूबे हुए हैं कि जब पूरा देश अयोध्या में रामलला के विराजमान और पुनः प्राण प्रतिष्ठा की प्रतीक्षा कर रहा है, वो बाबरी को ही याद कर रहे हैं। एक अखबार को दिए इंटरव्यू में कमलनाथ ने कहा कि विवादित बाबरी मस्जिद स्थल पर ताला राजीव गांधी ने खुलवाया था। इस परिप्रेक्ष्य में राजीव गांधी की भूमिका को नहीं भुलाया जा सकता। हम इतिहास को नहीं भूल सकते। कमलनाथ ने यह सब बातें चुनाव प्रचार के दौरान ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को दिए एक इंटरव्यू में कही।
पुराना है कमलनाथ का मुस्मिल प्रेम
ऐसा नहीं है कि चुनाव के मौसम में कमलनाथ अधिक तुष्टीकरण की बातें करते हैं। साल 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान कमलनाथ का एक वीडियो वायरल हुआ था। उसमें वे भोपाल में मुस्लिम समाज के नेताओं के साथ चुनाव में मतदान के प्रतिशत को लेकर चर्चा कर रहे हैं। कमलनाथ बैठक में उपस्थित लोगों से कह रहे हैं, "प्रदेश में जो मुसलमान बूथ हैं वहां अगर 50-60 प्रतिशत मतदान हुआ है तो क्यों हुआ? 60 प्रतिशत या 90 प्रतिशत मतदान क्यों नहीं हुआ, पिछले चुनाव का पोस्टमॉर्टम करना बहुत जरूरी है। अगर इस चुनाव में मुसलमान समाज के 90 प्रतिशत वोट नहीं पड़े तो हमें बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है।"
अयोध्या पर हमेशा ही असहज रही है कांग्रेस
अयोध्या मुद्दा कांग्रेस के लिए राजनीतिक रूप से असुविधाजनक विषय रहा है, जो 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के समय केंद्र में सत्ता में थी। ढांचे की रक्षा करने में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव की विफलता को कई लोगों ने देखा था। इससे पहले 1986 में राजीव गांधी सरकार ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने की अनुमति दी थी, जिसे हिंदुओं के प्रति एक संतुलनकारी कदम के रूप में देखा गया था, जब केंद्र ने कई लोगों को खुश करने के लिए शाहबानो के फैसले को पलटने वाला कानून पारित किया था। तीन साल बाद जैसे ही भाजपा ने अपने राम मंदिर अभियान को आगे बढ़ाया, राजीव सरकार ने बाबरी स्थल पर शिलान्यास की अनुमति दे दी।