अखिलेश की प्रेशर पॉलिटिक्स काम आई, आखिरकार सपा के आगे कांग्रेस को झुकना पड़ा
नई दिल्ली। वक्त वक्त की बात है,जब कांग्रेस का एक छत्र राज था। आज यही कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के दवाब में आकर समझौता करने को मजबूर है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव की प्रेशर पॉलिटिक्स के आगे आखिरकार कांग्रेस को झुगना ही पड़ा। तो क्या चारों तरफ से टूट रहे विपक्षी दलों के इंडिया ब्लॉक को लेकर अखिलेश ने दबाव की राजनीति की? क्या इसीलिए उन्होंने राहुल के अमेठी पहुंचने से पहले दूसरी लिस्ट जारी की। जिस वक्त राहुल अमेठी में अपनी यात्रा निकाल रहे थे, तब समाजवादी पार्टी की तीसरी लिस्ट भी आ गई। क्या इसी वजह से कांग्रेस को बैकफुट पर आना पड़ा। फिलहाल, साइकिल और हाथ एक बार फिर साथ हैं। सवाल ये है कि क्या प्रियंका गांधी ने इसलिए दखल दिया ताकि नीतीश कुमार और ममता बनर्जी के बाद अखिलेश यादव की तरफ से भी गठबंधन टूटने का दोष कांग्रेस को ना दिया जाए?
अब जब सीटों पर सहमति बन गई है तो अखिलेश यादव आगरा में राहुल गांधी की यात्रा में शामिल हो सकते हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या जिस मकसद से राहुल-अखिलेश साथ आए हैं, उसमें वो इस बार कामयाब होंगे या फिर नतीजा 7 साल पहले जैसा होगा? लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की जिन 17 सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ेगी। उनमें रायबरेली, अमेठी, कानपुर नगर, फतेहपुर सीकरी, बांसगांव, सहारनपुर, प्रयागराज, महाराजगंज, वाराणसी, अमरोहा, झांसी, बुलंदशहर, गाजियाबाद, मथुरा, सीतापुर, बाराबंकी, देवरिया शामिल हैं।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने अलायंस में महत्वपूर्ण भूमिक निभाई। उन्होंने राहुल गांधी और अखिलेश यादव से फोन पर बात की और गठबंधन की सारी अड़चनों को हटाया। सीटों पर सहमति बनने के बाद अखिलेश का भी बयान आया और उन्होंने कहा, अंत भला तो सब भला। बात पुरानी है लेकिन कहानी और किरदार वही हैं। वक्त की मांग को देखते हुए कांग्रेस और समाजवादी पार्टी साथ हैं। 7 साल बाद एक बार फिर मोदी को हराने के नाम पर यूपी के 2 लड़के मिल तो गए हैं। लेकिन सवाल गर्मजोशी को लेकर है? हालांकि ख्वाब तो पूरी रफ्तार से दौड़ने का था। लेकिन ये साथ 2017 के विधानसभा चुनाव में हार के साथ खत्म हो गया था। लेकिन एक बार फिर राजनीतिक मजबूरी ने दोनों के रास्ते एक कर दिए। हालांकि, कांग्रेस को अपनी शर्तों से पीछे हटना पड़ा और सपा को बड़े भाई के रूप में स्वीकारना पड़ा है।
यही वजह है कि अलांयस पर बात बिगड़ते दिखी तो अखिलेश ने साफ कर दिया कि जब तक सीट शेयरिंग तय नहीं होती वो राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा का हिस्सा नहीं बनेंगे। उसके बाद लखनऊ में सीटों के बंटवारे को लेकर दोनों दलों की तरफ से कोशिश बेनतीजा रही। इसकी वजह कांग्रेस का 20 सीटें मांगना बताया जाता है, जबकि अखिलेश लगातार 17 सीटों का ऑफर दे रहे थे। कांग्रेस ने 17 सीटों के अलावा 3 और सीटों की मांग कर दी थी, जिसमें बिजनौर, मुरादाबाद और बलिया की सीट शामिल है। कांग्रेस जब प्रेशर में आई तो अखिलेश ने मध्य प्रदेश का दांव भी खेल दिया। मध्य प्रदेश चुनाव की खजुराहो सीट पर सपा चुनाव लड़ेगी। बाकी सीटों पर कांगेस के उम्मीदवारों का समर्थन किया जाएगा। इससे पहले सपा की तरफ से मध्य प्रदेश में किसी सीट पर दावेदारी की चर्चा सामने नहीं आई थी।